जब बरसती हैं मानसून की पहली बारिश, तक क्या करता है पहाड़ ?

जब बरसती हैं मानसून की पहली बारिश, तक क्या करता है पहाड़ ?

जब मानसून की पहली बारिश फिजाओं में घोलती है माटी की गंद, जब गर्म चासनी में पकौड़ों के तले जाने की आवाजें सुनाई देती हैं, जब बारिश की महीम बूदें सूखे पत्तों के साथ बुनते हैं एक नए मौसमी संगीत के धुन, तब क्या करता है पहाड़? तब पहाड़ एक नए जंग की तैयारी कर रहा होता है....जहां कुछ लोग सूखी घास को बारिश से बचाने की कवायत में रहते हैं, तो कुछ लोग समेट लेते हैं सूखी लड़कियों को चूल्हे के पास। कुछ पाँव थिरकते हैं आँगन में सूख रहे अनाज को बचाने के लिए, तो कुछ हाथ बढ़ते हैं दहेज के पुराने भांडे-बर्तनों को निकालने के लिए, जो टपकती छत और मिट्टी के फर्स के बीच का आधार बनती है। मूसलाधार बारिश में भीगती कुछ आखें निहार रही होती है जंगलों से ना लौटे अपने मवेसियों को। उठती हैं कुछ आवाजें, जो घर के बच्चों को निर्देशित करती हैं, कि “अब कुछ दिनों तक बिजली नहीं आएंगी तो केरोसीन लैम ढूंढ लो” । कुछ लोग डर रहे होते हैं गिरती आकासी बिजली और उफनते गाड-गधेरों की भयावह आवाजों से, और इसी डर में गुजरती है पहली रात। और अगली सुबह लोगों के मुह से सुनाई देती हैं कुछ ऐसी बातें.. “बिजली गिरने से मोहनदा की 15 बकरियाँ मर गई बल हो” “सुना है पैर पड़ने से परुका के घर की पीछे की दीवार टूट गई“ “सेठाड़ी आमा का आग जलाने वाला छप्पर भी उड़ गया सुना तुमने” “ हमारे बबीता के सौरास के तो बगल वाले गाँव में बादल फटा बल कल रात, कितने ही घर बह गए बल, कइयों के तो जानवर भी मर गए हैं बल हो दीदी .. न जाने क्या बजर पड़ा भुलु कल रात इस अगास के ख्वार... सिबौ सिब-सिब। प्रकृति को बददुआ देते इन लोगों के पार “सिबौ सिब-सिब” कहने के अलावा शायद ही कोई और चारा हो.. और इन्हें बातों व कवायतों में गुजरते हैं इनके तीन महीने, जिसे चौमास कहते है।

Author: Rohit Bhatt