वह खिली वसंत के पहले दिन किसी पथरीली ज़मीन पर इसी तरह होता है पुनर्जन्म स्त्री का। मेरी ईजा का तो यहाँ तक विश्वास है कि
मैं जब कविता में रचूँगा ईजा का चेहरा नदी लिखूँगा चिड़ियाँ लिखूँगा पेड़ लिखूँगा खेत और नाज की बालियाँ लिखूँगा