सुबह का घाम पसरता रहा धार से घाटी की ओर अपने कांधे में झोला टाके हर रोज सुबह धूर डाने को जाता रहा लिस्वा।
जंगलों में फांसी खाई महिला वो अडभागी जो ताउम्र रही श्रृंगार से दूर अब चढ़ाते है लोग उसे सिंदूर, चूड़ी, कंधा व दर्पण ।
शहर की एक लड़की हर रोज सुबह दूर पहाड़ी से उगते सूरज को देख सोचती है अगर मेरा घर भी होता पहाड़ों में